Monday, September 29, 2008

जमिअत उलेमा-ए-हिन्द का सियासी सौदेबाज़ी

जामिया नगर में हुई तथाकथित मुठभेड़ के बाद एक बात जो खुलकर के सामने आई कि जो लोग किसी ज़ुल्म और अत्याचार के बाद ख़ामोश तमाशाई बने रहते थे अब उन लोगों ने भी आवाज़ उठानी शुरू कर दी हैं.

जामिया नगर में हुई तथाकथित मुठभेड़ के बाद सैंकड़ो लोगों और कई मुस्लिम संगठनों के चीफ़ से बाते करने का मौक़ा मिला.मेरी बातचीत में एक बात खुल कर सामने आई वो ये कि अब हाथ पर हाथ रखकर बैठने का समय नहीं है.

लेकिन काफ़ी अचरज उस वक्त हुआ जब इस सिलसिले में मेरी बात हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी मुस्लिम संगठन होने का दावा करने जमिअत उलेमा-ए-हिन्द के कार्यकारी महासचिव मौलाना अब्दुल हमीद नुमानी से हुई.

उनके कहने का लुबे लुबाब ये था कि पुलिस के अत्याचार के ख़िलाफ़ ज़्यादा हो होहल्ला करने की आवाश्यता नहीं है. उनका तर्क था कि हमने राजनैतिक डील के बाद गुजरात में उन सैंकड़ो लोगों को रिहाई दिलवाई है जो गोधरा कांड में अभियुक्त थे.

दिलचसप बात ये है कि जब उनसे पुछा गया कि मुठभेड़ जैसे मामलो पर क़ानुनी लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है तो उनका कहना था कि ऐसी चीज़ों को ख़ामोशी के साथ लड़ने की आवशयकता है. उन्होने कहा कि जो लोग ज़्यादा चिल्ला रहे हैं दरअसल काम कुछ नहीं कर रहे हैं.

जिनको थोड़ी सेयासी समझ है और जो लोग जमियत के इतिहान को थोड़ा बहुत जानते हैं उन्हे मौलेना नुमानी के बातों से अंदाज़ा लग गया होगा के असल में मनुमानी साहब कहना क्या चाहते हैं.

याद दिला दू के जब 2004 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे तो तब भी मई 2003 में जमिअत नें एक अधिवेशन बुलाया था और एक मुस्लिम सेयासी जमाअत बनाने की बात कही गई थी. जानकारों की राय में दरअसर वो अधिवेशन एक सेयासी सौदे बाज़ी थी.

2009 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं तो अप्रैल 2008 में देवन्द में भी आतंकवाद विरोधी कंवेनशन हुआ. मीडिया ने तारिफ़ की लेकिन पसे परदा उसका भी मक़सद सेयासी था जिसपर कोई सवाल नहीं उठाया ये अलग बात है.

आज की बात का जो सार था वो ये कि सेयासी सौदेबाज़ी ही मामले का हल है. मुझे ऐसा लगता है कि जामिया मुठभेड़ भी जमिअत के लिए एक अचछा मौक़ा है और अब वो इस मामले को सेयासी सौदेबाज़ी में बदलेंगे. और मेरी राय में कांग्रेस से अच्छी डील हो सकती है. ऐसे ही क़ौम की रहनुमीइ करते रहें.

1 comment:

Unknown said...

Achha likha aa ne,,,,,,,,,,,,