बिहार में बाढ़ की त्रासदी अपरिहार्य तौर पर एक बड़ी वीपत्ती है. सरकारी सहायता की कमी, नेपाल से पानी छोड़े जाने की जानकारी पहले से नहीं मुहिया करना से लेकर राजनैतिक पारट्रियो की आपसी रश्सा कशी निंदनीय है. लेकिन इस बीच एक बड़ा प्रश्न खुद बिहारियो के आचरण को लेकर है. जो खबरे आरही है उसके मुताबिक गरीब और कमजोर लोगो के साथ बाहुबल बहुत अत्याचार कर रहे हैं. साथ ही चोर भी अपना हाथ साफ कर रहे हैं.
सरकारी अमले द्रवारा बाढ़ में फंसे गरीब लोगो को बाहार निकालने मे दोहरा पैमाना अपनाया जारा है. उन्हे मरने के लिए छोड़ दिया गया है. उनके नाव को छीन लिया गया है. साथ ही उन इलाको की तरफ जाने वाली नावो को भी रोक कर अमीर अपनी दादागिरी देखा रहे है. गरीब सहायता के लिए तरस रहे हैं. लेकिन हम उन्हे मरने के लिए छोड़ कर अपने को एक बहादुर कोम साबित करने मे लगे हुऐ है. वाह रे बिहारी मानवता.
सबसे दुखद पहलु यह है कि इस बुरे वक्त में लोग सुरक्षित स्थान की तरफ जा रहे लोगो के सामान की चोरी भी कर रहे हैं जोकि एक करुर बिहारी समाज की झलक पैश कर रहा है. इस विपत्ती के समय हमें अपने बुरे आचरणो को भी देखना चाहिए.
शाद आप को लेगो को लगे के किसी एक घटना के बाद पुरे समाज को सवालो के कटघरे मे डालना कहॉ का इन्साफ है तो मै आप को बता दु के इस से पहले भी हमने ऐसी ही हरकते बिहारी समाज में देखी हैं.
मैं अपने बचपन के समय को याद करता हुँ तो भी एक कुरुर बिहार की छवी ऊभरती है. मुझे याद पड़ता है कि मेरे गाँव मे आग लगी थी गाँव के बड़े आग पर काबु पाने की कोशिश कर रहे थे जबकि कुछ लोग अपने अपने घरों से सामान बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. इस काम मे महिलाए भी उनकी सहायता कर रही थीं. लेकिन इस बीच सबसे दुखद घटना यह घटी के जिस सुरक्षित स्थान पर सामान लाकर रखा जारहा था वहाँ से सामान गायब हो रहे थे आप अन्दाजा लगा सकते है कि यह सामान अपने आप तो गायब नही हो रहे थे. जी यही हमारा समाज है.
Saturday, August 30, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
peryas achha hai. magar hindi sahi karne ki zaroorat hai. likhne ke bad revise kar liya kar. what u have to do is not decided, i think. eid mubarak
Post a Comment